Mahabharat katha:क्या थे यक्ष के 20 प्रश्न?
भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनको फॉलो करके हम अपने जीवन को सुखी और संपन्न बना सकते हैं। सिर्फ पैसा के पीछे भागकर हम अपने मूल जीवन को त्याग रहे हैं।महाभारत महाकाव्य के रूप में एक महत्वपूर्ण महाकाव्य हमारे बीच में है। जो दुनिया भर के पाठकों को प्रभावित और सीख देने का काम करता है। भगवद्गीता में हर सवालों का जवाब है। इसके हर श्लोक में मानव जाति के लिए एक सीख है। ऐसी ही महाभारत के कईं किस्सों में से कुछ कहानियां विशेष रूप से नैतिक मार्गदर्शन की भावना को जाग्रत करती हैं। महाभारत की कहानी, जो धर्म और अधर्म, गुण और पाप के बीच के जटिल संघर्ष का रूप दिखाती है। तो चलिए आपको महाभारत की कुछ हटकर कहानियां बताते हैं जिनका अर्थ और भाव आप सभी को ज़रूर समझना चाहिए।
महाभारत की उत्पत्ति (mahabharat written by)
महाभारत, ऋषि वेद व्यास ने लिखी है। ऐसा माना जाता है कि इस महाकाव्य को लिखने में 600 साल लग गए थे। महाभारत में कुल 1,00,000 श्लोक हैं। इसमें पाण्डवों और कौरवों के संबंधों की कहानी है। हस्तिनापुर की गद्दी के लिए प्रतिस्पर्धा और संघर्ष को बताया गया है। इसमें युद्ध की बातें हैं लेकिन इस विशाल कथा के भीतर, व्यक्ति नैतिक कथाओं की बहुत सारी बातों को भी ढूंढ सकता है। जो सभी के जीवन को सार्थक बना सकती है।
Mahabharat katha : युधिष्ठिर की ईमानदारी की कहानी
पांच पाण्डव भाइयों में से सबसे बड़े युधिष्ठिर, सत्य और धर्म के प्रति अपने अडिग आदर्श के जाने जाते हैं। उनकी नैतिक ईमानदारी का प्रतीक यक्ष प्रश्न की प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी में युधिष्ठिर और उनके भाई वनवास के दौरान एक झील पर पहुंचते हैं। वनवास के दौरान चल-चलकर सभी पांडव और द्रोपदी प्यास से बेहाल हो जाते हैं। जब वे अपनी प्यास बुझाते हैं तो बिना यक्ष पश्नों का उत्तर दिए बिना पानी पीने लगते हैं। जिससे एक-एक करके, वे मरने लगते हैं। युधिष्ठिर, इस रहस्यमय मौत के सामने भी निराश नहीं होते, आगे बढ़ते हैं और एक दिव्य रूपी यक्ष से मिलते हैं।यक्ष, जो कि किंवदंती युधिष्ठिर के पिता, धर्म है, उससे कुछ गहरे सवाल पूछते हैं। उनमें से एक सवाल जीवन के सबसे बड़े रहस्य के संबंध में है। युधिष्ठिर उस गहरे सत्य के साथ उत्तर देते हैं कि सबसे बड़ा रहस्य है कि प्रतिदिन अनगिनत प्राणियों की मृत्यु होती है, फिर भी जीवित व्यक्ति विश्वास करते हैं कि वे हमेशा जीवित रहेंगे।यक्ष द्वारा पूछ गए सवाल और युधिष्ठिर द्वारा दिए गए जवाब इस प्रकार हैं…
1. पृथ्वी से भारी क्या है ?
उत्तर – माता
2. आकाश से ऊंचा कौन है ?
उत्तर – पिता
3. पवन से भी तीव्र गति किसकी है ?
उत्तर – मन
4. संख्या में तिनको से अधिक क्या है ?
उत्तर – चिंता
5. मृत्यु के समीप हुए पुरूष का मित्र कौन है ?
उत्तर – दान
6. धर्म, यश, स्वर्ग और सुख का मुख्य स्थान क्या है ?
उत्तर – धर्म का मुख्य स्थान दक्षता, यश का मुख्य स्थान दान, स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य और सुख का मुख्य स्थान शील है।
7. मनुष्य की आत्मा क्या है ?
उत्तर – पुत्र
8. जगत को किस वस्तु से ढक रखा है ?
उत्तर – अज्ञान ने
9. आलस क्या है ?
उत्तर – धर्म का ना करना आलस है
10. सुखी कौन है ?
उत्तर – जो ऋणी ना हो यानि जिसके पास कोई कर्ज ना हो
11. सच्चा स्नान कौन सा है ?
उत्तर – जो मन का मैल धो दे
12. काजल से भी अधिक काला क्या है ?
उत्तर – कलंक
13. लोक में श्रेष्ठ धर्म क्या है ?
उत्तर – दया श्रेष्ठ धर्म है
14. किसको वश में रखने से शोक नहीं होता है ?
उत्तर – मन
15. लज्जा क्या है ?
उत्तर – ना करने योग्य काम से दूर रहना लज्जा है
16. दया क्या है ?
उत्तर – सभी के सुख की इच्छा करना दया है
17. राष्ट्र की मृत्यु का कारण क्या होता है ?
उत्तर – अराजकता
18. वास्तव में ब्राह्मत्व का प्रमाण क्या है ?
उत्तर – ब्राह्मत्व का प्रमाण चरित्र है।
19. धर्म क्या तर्क में है, धर्म का संपूर्ण सत्य कहां है ?
उत्तर – नहीं…धर्म का संपूर्ण सत्य व्यक्ति के ह्रदय की गुफा में है।
20. सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
उत्तर – हर व्यक्ति ये जानता है कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, लेकिन उसके जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु नहीं है।
इस सभी सवालों के सही उत्तर देने के बाद यक्ष, युधिष्ठिर से किसी भी एक भाई को जीवित करने का वचन देते हैं। युधिष्ठिर यहां पर नकुल को जीवित देखना चाहते हैं क्योंकि पिता पांडव की दूसरी पत्नी से नकुल और सहदेव हुए थे। कुंती पुत्रों में वो जीवित थे और माता माद्री के किसी एक पुत्र को जीवित देखना चाहते थे। जिससे माता माद्री के साथ न्याय हो सके।
Mahabharat katha : ईमानदारी और धर्म का महत्व
इस कहानी का सिखाया सत्य स्पष्ट है – ईमानदारी, अखंडता, और धर्म के पालन का, या धार्मिक दायित्व का, यही सबसे उच्च गुण है जो किसी के पास हो सकता है। युधिष्ठिर की मौत के बावजूद सत्य के प्रति उनकी अविचल प्रतिबद्धता समय के साथ नैतिक मूल्यों के आवश्यकता को प्रदर्शित करती है।
Mahabharat katha : भीष्म का दायित्व के लिए त्याग
महाभारत में धर्म और नैतिक मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक और पात्र हैं – भीष्म पितामह। भीष्म, जीवनभर की ब्रह्मचर्य, वफादारी और अजेयता का व्रत प्राप्त करके कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध एक प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं।
उनकी सिंहासन और राजा के प्रति प्रतिबद्धता दिखाती है कि धर्म के प्रति कर्तव्य और आत्मनिर्भरता के महत्व को समझने के लिए किए जाने वाले बलिदान का महत्व है।
Mahabharat katha : भगवान कृष्ण की दिव्य सलाह
Mahabharat katha
महाभारत की बात हो और भगवान कृष्ण की बात ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है ? महाभारत में चिंता और नैतिक दुविधाओं के बीच जो घिरे हुए हैं, वहां प्रभु श्रीकृष्ण एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में प्रकट होते हैं। उनकी दिव्य गीता में अर्जुन के साथ दिए गए दिव्य सलाह में कर्म, धर्म, और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर गहरे दर्शन प्रदान करते हैं। कृष्ण की शिक्षाएं इस बात को महत्वपूर्ण रूप से प्रमोट करती हैं कि कर्तव्य को क्रियाओं के फल के साथ आसक्ति के बिना पूरा किया जाना चाहिए – एक सिखाने वाली शिक्षा जो आज भी महत्वपूर्ण और गहरी है। श्रीकृष्ण से सिर्फ भगवद्गीता में ही ज्ञान नहीं दिया बल्कि पूरे महाभारत के दौरान उन्होंने पांडवों के पक्ष और विपक्षी दोनों खेमों को धर्म का पाठ सिखाया। चाहे वो धृतराष्ट्र हो या फिर भीम।महाभारत की इन छोटी-छोटी कहानियों से सीख लेकर हम अपने जीवन को सुख-शांति और संपन्नता दे सकते हैं। भौतिक सुखों के चक्कर में पड़कर हम जीवन के असली सिद्धांतों को भूल रहे हैं। ऐसी कहानियां आपको असली जीवन से रू-ब-रू करवाती है।